-खेलों की गहरी समझ रखने वाले बेदी जी के बराबर आज शायद ही कोई होगा।
-एक बार एक पत्रकार के लेख में बिशन सिंह बेदी की जगह उनका फोटो छप गया था।
-कभी खेल प्रैस वार्ता उनसे शुरू और उनसे ही समाप्त होती थी।
–विजय कुमार
नई दिल्ली,16 जून। खेल पत्रकार हरपाल सिंह बेदी मेरे दोस्त ही नहीं, बल्कि एक पिता के सामान वाला सम्मान रखते थे। मेरी अपनी 30 साल की पत्रकारिता मंे भले ही उनके साथ शुरू में मेरे रिष्ते उनके साथ कुछ खास नहीं थे। लेकिन जैसे जैसे वो और मैं नजदीक आते गए रिश्ते भी मजबूत बनते गए और एक दूसरे को समझते भी चले गए। वह अक्सर मुझे अच्छी और बुरी बातों को लेकर समझाया करते थे। जिनके एक बार कहने पर मैं उनकी बात को मान भी लेता था।
73 वर्ष के हरपाल मेरे दोनों ही बेटो रिदम व उत्कर्ष से भी मिलकर उनको उनके करियर के बारे में जानकारी लेते और आगे कैसे क्या करना है को लेकर बात किया करते थे। मेरे बडे बेटे से उनका लगाव कुछ ज्यादा था क्योंकि वह भी पत्रकारिता से जुडा हुआ था। उसने ही मुझे शनिवार की सुबह बेदी जी के निधन की खबर दी थी, जिसको सुनने के बाद मैं कुछ सेकेंड के लिए सन्न रह गया था।
मैं उनसे पहली बार 1990 के दौरान दिल्ली के फीरोजषाह कोटला मैदान पर हुई थी। उसके बाद मैं आईएनएस बिल्डिंग में दैनिक जागरण के आफिस में बैठा करता था तथा वह यूएनआई में। मैंने अक्सर उनके साथ क्रिकेट,हाकी, फुटबाल आदि खेलों के विष्व स्तरीय टूर्नामेंटों में रिपोर्टिंग की गई। यहीं नहीं प्रैस बॉक्स में बेदी जी के आने के बाद प्रत्येक पत्रकार के चेहरे पर रौनक आ जाया करती थी। जिनमें अपने समय के बडेृ पत्रकार कमलेश थपलियाल, लाल साहब, केपी मोहन, माध्वन जी आदि तो उनके आते ही कुछ ऐसा कह देते थे कि बेदी जी का जवाव तुरंत उनको मिल जाता था।
बेदी जी के बारे में कहा यह जाता था कि संवाददाता सम्मेलन उनके आने के बाद ही शुरू होता था तथा समाप्त भी उन्हीं के हाथों, कार्यक्रम आयोजित करने वाले उनका घंटो इंतजार तक करते थे। यहीं नहीं विश्व का कौन सा सबसे बडा इवेंट था जो उन्होंने यूएनआई में रहते हुए कवर ना किया हो, चाहे ओलंपिक, हाकी विष्व कप, एशियन चैंपियनषिप, काम्नवेल्थ टूर्नामेंट आदि सभी शामिल है।
बेदी साहब हर दिल अजीज और जिंदा दिल इन्सां थे। हमेशा खुश दिखा करते थे। कई बार उनसे मुलाकात मंडी हाउस पर हो जाया करती थी तो बताते थे कि वह प्रैस क्लब से पैदल यहां तक आए है। वह पैदल भी बहुत तेज चला करते थे।
एक बार का किस्सा है कि मैं उनके साथ क्नाट प्लेस में किसी काम से जा रहा था। वहां कुछ लोगों ने उनसे पूछा की आप बेदी जी है। वह अक्सर मना कर देते थे, जबकि मैं कहता था हा यह बेदी जी ही है। वह कहते थे यह बिशन सिंह बेदी की बात कर रहे है,तब मैं कहता था कि उन्होंने बिशन सिंह नहीं बेदी जीत पूछा है यह सच ही है की आप बेदी हो ।
पिछले एक साल से मैं उनका बीसीसीआई और आईपीएल का कार्ड बनाने में मदद करता था। टी-20 विश्व कप का कार्ड भी मैनें भर कर बनवा लिया था। मगर तबीयत ठीक नहीं होने से वह कोटला मैदान पर नहीं पहुंच पाए। लेकिन मेरी जब भी बात होती वह कहते मेरा कार्ड बैग में डाल कर रख जल्द ही उसको लेने के लिए तेरे पास आता हू। हालांकि बीच-बीच में उनसे बाते भी हुई वह कहते थे कि अभी तबीयत ठीक नहीं है, जल्द ही मिलूंगा। लिखने को तो काफी कुछ है इसको शब्दों में समेटना मुश्किल हैं, कोशिश करता भी उनसे बात करे तो ईष्वर को षायद उनसे मिलना मंजूर नहीं था और वह हमे बीते षनिवार 15 जून को हमे हमेशा के लिए छोडकर चले गए। वह ऐसे इंसा थे जो हमेशा ही याद आयेंगे।
सौंजन्य-विजय कुमार, बेदी जी के साथ गुजरे कुछ पल यादों में