आरोप है कि पूर्व की कांग्रेस सरकारों ने समय-समय पर सरकारी कर्मचारियों पर संघ के कार्यक्रमों में शामिल होने पर रोक लगा दी थी। आरएसएस की गतिविधियों में शामिल होने पर कर्मचारियों को कड़ी सजा देने तक का प्रावधान लागू किया गया था।
गृह मंत्रालय ने नौ जुलाई को एक आदेश जारी करते हुए सरकारी कर्मचारियों के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की गतिविधियों में शामिल होने पर लगा प्रतिबंध हटा लिया है। इस आदेश में केंद्र सरकारों के द्वारा 1966, 1970 और 1980 के उन आदेशों में संशोधन किया गया है, जिनमें कुछ अन्य संस्थाओं के साथ-साथ आरएसएस की शाखाओं और अन्य गतिविधियों में शामिल होने पर सरकारी कर्मचारियों पर कड़े दंडात्मक प्रावधान लागू किए गए थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इस आदेश का स्वागत किया है।
दरअसल, आरोप है कि पूर्व की कांग्रेस सरकारों ने समय-समय पर सरकारी कर्मचारियों की संघ के कार्यक्रमों में शामिल होने पर रोक लगा दी थी। आरएसएस की गतिविधियों में शामिल होने पर कर्मचारियों को कड़ी सजा देने तक का प्रावधान लागू किया गया था। सेवानिवृत होने के बाद पेंशन लाभ इत्यादि को ध्यान में रखते हुए भी अनेक सरकारी कर्मचारी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में शामिल होने से बचते थे। हालांकि, इस बीच मध्यप्रदेश सहित कई राज्य सरकारों ने इस आदेश को निरस्त कर दिया था, लेकिन इसके बाद भी केंद्र सरकार के स्तर पर यह वैध बना हुआ था। इस मामले में एक वाद इंदौर की अदालत में चल रहा था, जिस पर अदालत ने केंद्र सरकार से सफाई मांगी थी। इसी पर कार्रवाई करते हुए केंद्र सरकार ने नौ जुलाई को एक ऑर्डर जारी करते हुए उक्त प्रतिबंधों को समाप्त करने की घोषणा कर दी।
RSS-BJP में तनाव के बीच आदेश
केंद्र सरकार ने यह आदेश ऐसे समय में जारी किया है, जब कथित तौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा में कुछ तनातनी की खबरें आती रही हैं। कुछ लोगों का मानना है कि भाजपा के असहयोगात्मक रुख के कारण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने लोकसभा चुनाव में पर्याप्त सहयोग नहीं किया, जिसके कारण भाजपा को बहुमत से दूर रह जाना पड़ा। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी कुछ दिन पूर्व ही ऐसी टिप्पणी की थी, जिसे केंद्र सरकार की कड़ी आलोचना के रूप में देखा गया था। लोकसभा चुनाव में अपेक्षित सफलता न हासिल करने पर राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के नेता इंद्रेश कुमार ने भी जनता के द्वारा ‘अहंकारी लोगों को सबक’ सिखा दिए जाने की बात कही गई थी। उनकी यह टिप्पणी भी केंद्र सरकार के खिलाफ मानी गई थी। हालांकि बाद में उन्होंने भी अपने बयान से पल्ला झाड़ लिया था।
संसद में हंगामा होने के आसार
जिस तरह का इस समय माहौल चल रहा है, लोकसभा चुनावों में मजबूत होकर उभरा विपक्ष इस आदेश को लेकर केंद्र पर हमलावर रुख अपना सकता है। सोमवार 22 जुलाई से ही संसद का सत्र आगे बढ़ाया जाएगा, जिसमें केंद्र सरकार द्वारा वर्तमान वित्त वर्ष के लिए बजट भी पेश किया जाने वाला है।
प्रतिबंध बिल्कुल गलत- आरएसएस
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी राजीव तुली ने अमर उजाला से कहा कि केंद्र सरकार का यह निर्णय स्वागत योग्य है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश के निर्माण में लगा हुआ संगठन है। यह पूरे देश में हर एक जगह पर काम करता है और समाज के किसी भी वर्ग से किसी प्रकार के भेदभाव के बिना इसमें सब के शामिल होने और राष्ट्र निर्माण के लिए कार्य करने की आजादी रहती है। संगठन समाज के सभी वर्गों को केवल भारतीय होने की दृष्टि से देखता है और सब की भलाई के लिए एक समान रूप से कार्यरत रहता है। ऐसे संगठन पर गलत मानसिकता से पूर्व की कांग्रेस सरकारों द्वारा लगाया गया प्रतिबंध बिल्कुल गलत था। यह जनभावनाओं का भी अपमान था। लोगों ने इसे अपने स्तर पर पहले ही अस्वीकार कर दिया था, अब गृह मंत्रालय ने इस तरह का आदेश देकर उन लोगों की मनोभावनाओं का सम्मान किया है, जो सरकारी सेवाओं में रहते हुए भी आरएसएस के साथ जुड़कर राष्ट्र निर्माण की अपनी इच्छा पूरी करना चाहते थे। उन्होंने कहा कि अब ऐसे लोगों के लिए द्वार खुल गया है।
कुंठित मानसिकता से ग्रस्त थी कांग्रेस- तरुण विजय
पांचजन्य के पूर्व संपादक तरुण विजय ने अमर उजाला से कहा कि पूरी दुनिया में आरएसएस एक राष्ट्र निर्माण करने वाले संगठन के रूप में देखा जाता है। केवल राजनीतिक विद्वेष के कारण पूर्व की कांग्रेस सरकारों ने समय-समय पर आरएसएस पर इस तरह के प्रतिबंध लगाए, जिससे लोगों को आरएसएस में शामिल होने से रोका जा सके। लेकिन इतिहास बताता है कि कांग्रेसी सरकारों की यह सोच कभी कामयाब नहीं हो पाई। लोग सरकारी नौकरी में रहकर भी आरएसएस से जुड़े और देश के लिए काम करते रहे। उन्होंने कहा कि आरएसएस लगातार आगे बढ़ता रहा और देश के साथ-साथ दुनिया के कोने-कोने में फैल गया।
तरुण विजय ने कहा कि कांग्रेसी सरकारों के आदेश की इससे बड़ी आलोचना और क्या हो सकती है कि जनता ने आरएसएस के दो कार्यकर्ताओं को देश का प्रधानमंत्री (अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी) बनाया। इसे आरएसएस की बड़ी सफलता मानी जाती है, लेकिन इसके बाद भी यह आदेश अब तक आधिकारिक रूप से बना हुआ था। इसे खारिज करके केंद्र सरकार ने स्वयं अपना भी मान बढ़ाया है। उन्होंने इस आदेश का स्वागत किया।