सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि सिर्फ आरोपी की निर्दोषता का अनुमान लगाना, अग्रिम जमानत देने के लिए एकमात्र आधार नहीं हो सकता। यदि आरोपी को भ्रष्टाचार मुक्त समाज सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्रता से वंचित किया जाता है, तो कोर्ट को इसमें कोई संकोच नहीं करना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोर्ट को आरोपी को आजादी न देने में संकोच नहीं करना चाहिए, यदि यह कदम भ्रष्टाचार मुक्त समाज सुनिश्चित करने में मदद करता हो। जस्टिस जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की पीठ ने एक सार्वजनिक अधिकारी की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार में बहुत खतरनाक संभावनाएं हैं।
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के खिलाफ ‘सुप्रीम’ टिप्पणी
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि कभी-कभी आरोपी की स्वतंत्रता को अत्यधिक सम्मान देने से सार्वजनिक न्याय का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाता। यह टिप्पणी पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के उस आदेश के खिलाफ दी गई, जिसमें इस अधिकारी की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया था। आरोपी पर आरोप था कि उसने एक ग्राम पंचायत के विकास कार्यों के ऑडिट के दौरान अवैध रिश्वत की मांग की थी।
भ्रष्टाचार समाज के लिए कहीं अधिक खतरे का कारण’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर जनता के बीच भ्रष्टाचार के बारे में जो भी बातें कही जा रही हैं, यदि उनमें से कुछ भी सच है, तो यह देश में व्यापक भ्रष्टाचार का संकेत है, और यही देश की आर्थिक समस्याओं का मुख्य कारण है। कोर्ट ने यह भी कहा कि भ्रष्टाचार, विशेष रूप से सरकारी अधिकारियों और राजनीतिक दलों में, समाज के लिए कहीं अधिक खतरे का कारण है, जो कि किसी भी अन्य अपराध से कहीं ज्यादा गंभीर है।
कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि सिर्फ आरोपी की निर्दोषता का अनुमान लगाना, अग्रिम जमानत देने के लिए एकमात्र आधार नहीं हो सकता। यदि आरोपी को भ्रष्टाचार मुक्त समाज सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्रता से वंचित किया जाता है, तो कोर्ट को इसमें कोई संकोच नहीं करना चाहिए। आखिरकार, कोर्ट ने इस अधिकारी की याचिका खारिज करते हुए कहा कि अगर वह नियमित जमानत के लिए आवेदन करता है तो उसे मेरिट के आधार पर विचार किया जाएगा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश का प्रभाव उस पर नहीं पड़ेगा।