मालेगांव विस्फोट कांड के सभी आरोपी NIA की विशेष अदालत से रिहा हो गए हैं. इनमें पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित भी हैं. आरोपियों के बरी हो जाने की यह कोई पहली घटना नहीं है. इसके पहले भी कई ऐसी आतंकी वारदात हुई हैं, जिनमें सभी आरोपी रिहा कर दिए गए.

या तो अपने देश की न्यायिक प्रक्रिया इतनी कठोर है कि आरोपी को सजा दिलाना मुश्किल है, या फिर पुलिस जांच इतनी ढीली होती है कि कोई भी आरोपी बस राजनीतिक ताक़त और पैसे का इस्तेमाल करे तो साफ़ बच निकलता है. 29 सितंबर 2008 में नासिक के समीप मालेगांव विस्फोट कांड के सभी आरोपी NIA की विशेष अदालत से रिहा हो गए. इनमें पूर्व सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर भी हैं और कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित भी. मालूम हो कि साध्वी प्रज्ञा ठाकुर 2019 के लोकसभा चुनाव में भोपाल संसदीय सीट से कांग्रेस के दिग्विजय सिंह को हराकर लोकसभा में पहुंचीं थीं. उनका रसूख़ और उनकी ताक़त अकूत थी. उनके पीछे उनके अनुयायियों की बड़ी संख्या थी. उन पर आरोप लगाना आसान नहीं था.
साध्वी प्रज्ञा ठाकुर पर निशाना
किंतु उस समय महाराष्ट्र ATS के प्रमुख हेमंत करकरे ने सीधे साध्वी प्रज्ञा ठाकुर पर निशाना साधा था. हेमंत करकरे बहुत चर्चित और जांबाज़ पुलिस अधिकारी थे. आतंकवाद विरोधी दस्ते का प्रमुख उन्हें इसलिए बनाया गया था क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी आतंकवाद से निपटने में वे माहिर थे. उन्होंने RAW में रहते हुए ऑस्ट्रिया में काम किया था. मध्य प्रदेश के इस IPS अधिकारी को महाराष्ट्र कैडर मिला था. उन्होंने कई नक्सल प्रभावी इलाक़ों में भी तैनाती पाई थी. हेमंत करकरे को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और कांग्रेस के चर्चित राजनेता दिग्विजय सिंह का करीबी बताया जाता था. लेकिन मालेगांव घटना के दो महीने बाद 26 नवंबर 2008 को मुंबई के होटल ताज पर आतंकवादी हमला हुआ. इस हमले में वे शहीद हो गए.
आरोपी बरी हो गए तो घटना को अंजाम किसने दिया!
आरोपियों के बरी हो जाने की यह कोई पहली घटना नहीं है. इसके पहले भी कई ऐसी आतंकी वारदात हुई हैं, जिनमें सभी आरोपी रिहा कर दिए गए. अभी कुछ दिनों पूर्व 21 जुलाई को मुंबई सीरियल ब्लास्ट में सभी 12 आरोपी रिहा हो गए थे. इसी तरह 2019 में समझौता एक्सप्रेस विस्फोट कांड के आरोपी भी बरी हो गए थे. इसलिए यह प्रश्न उठता ही रहता है कि यदि सभी आरोपी निर्दोष बताये जाते रहे तो वारदात को अंजाम किसने दिया था? अभी तक आतंकवादी वारदातों में असली दोषी को कभी सजा नहीं मिल सकी है. तो क्या यह मान लिया जाए कि पुलिस पुख़्ता सबूत नहीं जुटा पाती. अक्सर होता यह है कि राज्य की पुलिस किसी और को आरोपी बनाती है. पर इसके बाद केंद्रीय जांच एजेंसियां दूसरों को.
न्यायिक प्रक्रिया की जटिलता
नासिक के आयुध भंडार से चोरी हुए 60 किलो विस्फोटक (RDX) से मालेगांव की मस्जिद को उड़ाया गया था. इस विस्फोट में छह लोग मारे गए थे. अनेक घायल हुए थे. विस्फोटक एक मोटर साइकिल में रखा था. NIA कोर्ट ने 31 जुलाई को सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया. कोर्ट ने कहा है कि किसी भी आरोपी के विरुद्ध पुख़्ता सबूत नहीं मिले. जमायत-ए-उलेमा ने इस फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की ठानी है. पर यह सवाल जस का तस है कि आतंकवादी वारदातों में जांच एजेंसियां इतनी लचर जांच क्यों करती हैं कि आरोपी जेल से रिहा हो जाते हैं. अगर सभी आरोपी निर्दोष हैं तो आतंक की इन घटनाओं को अंजाम किसने दिया? हमारी न्यायिक प्रक्रिया की यह जटिलता और एजेंसियों की जांच में ढिलाई ऐसी घटनाओं पर सख़्ती से लगाम नहीं लगाने देती.
लोकल ट्रेन में सीरियल ब्लास्ट
11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में सीरियल ब्लास्ट हुए थे. मात्र 11 मिनट के अंदर 7 जगह विस्फोट हुए. वह भी शाम के पीक ऑवर के समय जब लोकल ट्रेनें खचाखच भारी होती हैं. इन विस्फोटों में 209 लोग मारे गए थे और 700 से अधिक लोग घायल हुए थे. इन सारे विस्फोटकों के लिए प्रेशर कुकर का इस्तेमाल हुआ था. इस कांड में पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा का नाम आया था. जांच में यह भी पता चला था कि ये विस्फोटक नेपाल सीमा के रास्ते पाकिस्तान से आए थे. इस विस्फोट कांड में इंडियन मुजाहिदीन (IM) का नाम बाद में आया था. घटना के एक महीने बाद 21 अगस्त को मुंबई पुलिस ने दो पाकिस्तानी हमलावरों को मार गिराया था और एक को क्रुद्ध भीड़ ने मार डाला. बाद में कुल 13 आरोपी गिरफ़्तार किए गए थे.
हिंदू आतंकवाद!
विशेष अदालत ने 9 साल बाद 12 लोगों को दोषी ठहराया और इनमें से 5 को फांसी की सजा दी. ये लोग बॉम्बे हाई कोर्ट गए, जहां 21 जुलाई 2025 को सभी 12 आरोपी बरी कर दिए गए. यहां भी यही बात आई की अभियोजन पक्ष पुख़्ता सबूत नहीं पेश कर पाई. महाराष्ट्र सरकार हाई कोर्ट के फ़ैसले के विरोध में सुप्रीम कोर्ट गई. तीन दिन के भीतर 24 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फ़ैसले पर रोक लगा दी लेकिन यह स्पष्ट तौर पर कहा कि आरोपी अब जेल वापस नहीं जाएंगे. जब यह कांड हुआ था, तब पूरा देश सन्न रह गया था. मुंबई भारत की आर्थिक राजधानी है. वहां पर चर्च गेट स्टेशन से से आगे बोरीवली तक सात स्टेशनों पर ब्लास्ट हुआ. 209 लोग मारे गए थे. कहा जाता है, इस कांड के बाद इसका बदला लेने के लिए हिंदू आतंकवाद शुरू हुआ.
वर्षों बाद भी जांच एजेंसियां खाली हाथ
उस समय लश्कर-ए-तैयबा (LET) से जुड़े एक संगठन लश्कर-ए-क़हार ने इन विस्फोटों की जिम्मेदारी ली थी. 14 जुलाई को एक टीवी चैनल को भेजे ई मेल में इस संगठन ने दावा किया कि उसने गुजरात और कश्मीर का बदला लेने के लिए ये विस्फोट किए. इसके बाद पुलिस ने 350 लोग उठाए थे लेकिन धीरे-धीरे LET से मामला IM (इंडियन मुजाहिदीन) पर आ गया. और इस मामले की जांच ढीली पड़ती गई और 2015 की सितंबर में 12 लोगों को दोषी पाया गया. किंतु उच्च अदालत में जाते-जाते पुलिस और जांच एजेंसियां किसी भी आरोपी को दोषी नहीं साबित कर पाईं. सब के सब बरी हो गए. यदि कोई दोषी नहीं था तो 12 लोगों का उत्पीड़न क्यों हुआ? क्यों उनके मानवीय अधिकार नष्ट किए गए? उनकी ज़िंदगी का बड़ा हिस्सा जेल में बीत गया.
समझौता एक्सप्रेस विस्फोट
मुंबई सीरियल ब्लास्ट के सात महीने बाद 18 फ़रवरी 2007 को हरियाणा के पानीपत शहर के निकट अटारी जा रही समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट हुआ. यह विस्फोट दो जनरल कोच में हुआ, इसमें 68 लोग मारे गए थे. मुख्य आरोपी असीमानंद समेत अन्य कई लोग नामज़द हुए. यह ट्रेन भारत और पाकिस्तान के बीच दोस्ताना रिश्ते को पुख़्ता करने के लिए चलाई गई थी. ट्रेन दिल्ली से भारतीय सीमा के अटारी स्टेशन तक जाती और वहां पाकिस्तान सीमा के वाघा बॉर्डर से पाकिस्तान रेलवे की ट्रेन यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुंचाती. यह ट्रेन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के काल में चली थी. इसके लगभग सभी मुसाफ़िर पाकिस्तानी थे या वे भारतीय जो पाकिस्तान में अपने रिश्तेदारों से मिलने जा रहे थे. इस विस्फोट ने भारत-पाकिस्तान के बीच पनप रहे मधुर संबंधों की जड़ खोद दी.
मोटर साइकिल भी सबूत न बन सकी
कहा गया था कि इस कांड को अंजाम हिंदू आतंकवादियों ने दिया. इस कांड की वर्षों चली जांच के बाद कुल 8 आरोपी बनाए गए. इनमें से एक की जांच के दौरान मौत हो गई तथा तीन को भगोड़ा घोषित किया गया. मार्च 2019 में पंचकुला की NIA अदालत ने फ़ैसला सुनाया और अभी चारों आरोपी बरी हो गए. बरी होने वालों में असीमानंद भी था. इस तरह इस पूरे विस्फोट कांड का पटाक्षेप हो गया. मालेगांव बम विस्फोट कांड सितंबर 2008 में हुआ और इस कांड को अंजाम देने में भी हिंदू आतंकवाद का ज़िक्र ख़ास तौर पर हुआ. इसमें मुख्य आरोपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और लेफ़्टिनेंट कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित को बनाया गया. आरोप था कि इस विस्फोट में जिस मोटर साइकिल का इस्तेमाल किया गया, वह साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के नाम थी.
पार्टियों के बीच की राजनीति
बाद में पता चला कि वह मोटर साइकिल उन्होंने बेच दी थी. मगर कागज ट्रांसफर नहीं हो सके. इसको 2011 में NIA अपनी जांच के दायरे में लिया. NIA की जांच में कई ऐसी बातें पता चलीं कि इस कांड में भाजपा और कांग्रेस दोनों अपनी-अपनी चालें चल रही थीं. 2010 में कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम ने सीधे-सीधे इस कांड में हिंदू आतंकवाद से जोड़ा. लेकिन भाजपा सरकार के आते ही बताया गया कि कांग्रेस ने जानबूझकर इस शब्द को जोड़ा. मगर लोग यह तो जानने के इच्छुक रहते ही हैं कि आखिर इस विस्फोट कांड के पीछे मास्टरमाइंड कौन था?