विजय कुमार।
नई दिल्ली, 23 अक्टूबर। भारत में इन दिनों विश्व कप क्रिकेट को लेकर
माहौल बना हुआ है। जहां मेजबान भारत ने पांच मैच जीत कर अपने को अंक
तालिका के पहले स्थान पर बनाया हुआ है। मगर विश्व कप के पूरे होने से
पूर्व ही क्रिकेट
जगत के लिए एक बुरी खबर सामने आई है, कि भारतीय टीम के पूर्व कप्तान और
लीजेंड लेफ्ट ऑर्म स्पिनर बिशन बेदी अब नहीं रहे।
77 वर्ष की उम्र में निधन पर कुछ यादें हमारे साथ भी उनकी रही है-उन्हीें
यादों में से एक बिशन सिंह बेदी को लोग एक क्रिकेटर के रूप में भले ही
अधिक जानते हो, मगर वह एक जिंदा दिल इंसान भी थे। वह क्रिकेट छोडने के
बाद दिल्ली ही नहीं कई राज्यों के कोच और चयनकर्ता भी रहें। जहां तक मेरे
अपने अनुभव की बात है, जब मैनें पत्रकारिता शुरू ही की थी कि बिशन सिंह
बेदी का अक्सर डीडीसीए मंे आना जाना हुआ करता था। वह तत्कालिन समय के
खेल सचिव रहे सुनील देव और मनमोहन सूद के पास अक्सर आकर बैठा करते थे।
जहां वह वर्तमान और अपने समय की क्रिकेट की बातें किया करते थें। बिशन
सिंह बेदी क्रिकेट के अलावा चुटकले सुनाने में भी माहिर थे। उनके चुटकले
सुनाने के बाद शायद ही कोई अपनी हंसी रोक पाता था। यहीं नही बिशन सिंह एक
बेहतर कोच भी थे उनकी कोचिंग मंे स्पिन गेंदबाजी पर कमाल दिखाने वाले
पूर्व क्रिकेटरों में हरभजन सिंह और शरणदीप को तो आप लोग जानते ही है।
कहा यह भी जाता है कि बेदी जी का फिटनेस कैंप जिसने कर लिया वह कभी भी
क्रिकेट में कभी अनफिट नहीं हो सकता।
एक किस्सा उन दिनों का भी है जब भारतीय टीम को इग्लिश दौरे पर जाना था।
हर बार की तरह टीम को दो विकेटकीपरों को जाना था। जिसमें दिल्ली के एक
विकेटकीपर का जाना लगभग तय हो चुका था। मगर दिल्ली के एक कोच को उनके
खिलाफ बोलने की सजा चेले को भुगतनी पडी। उस टीम में एकमात्र विकेट कीपर
को ले जाया गया और दिल्ली ही नहीं, देश के श्रेष्ठ विकेटकीपरों में शुमार
होने वाले मोहन चर्तुवेदी को देश में ही रहना पडा। असल में सुभानियां
क्लब के खिलाडी मोहन चर्तुवेदी के कोच राधे श्याम ने बिशन सिंह बेदी को
दिल्ली के एक मैच में काफी कुछ गलत सुना डाला था। जिसका गुस्सा उस
क्रिकेटर को विदेशी दौर में ना जाकर चुकाना पडा। मोहन चर्तुवेदी के स्थान
पर जिसको ले जाया गया वह बिशन सिंह बेदी के बल्लेबाज चेले थे, जिन्हें आज
टेस्ट क्रिकेटर का दर्जा मिला हुआ है।
बिशन सिंह बेदी ने दिल्ली की क्रिकेट को सुधारने का भी काफी प्रयास
किया। वह अक्सर प्रशासन के खिलाफ क्रिकेटरों की लडाई में खडे रहे।
डीडीसीए ने उनके सम्मान में कोटला में स्टैंड तो बना दिया। मगर वह सम्मान
नहीं दिया, जो उनका बनता था।
बिशन सिंह बेदी जहां एक शानदार क्रिकेटर थे वह कोच की भूमिका में भी किसी
से किसी बात का समझौता नहीं किया करते थे। उस दौरान के क्रिकेटर बताते है
कि वह सबसे अधिक रूष्ट मैदान पर लेट आने वाले से हुआ करते थे। वह
क्रिकेटर को किस तरह की डृैस पहनकर आना चाहिए, अक्सर ध्यान मंे रखते थे।
वह क्रिकेटरों की पैंट को पैरों से उपर कर जुराबों का रंग देख लिया थे,
जो सफेद जुराब नहीं पहन कर आता था, उसको मैदान से ही भगा देते थे।
हां बिशन सिंह बेदी ने भले ही काफी क्रिकेटरों को अपनी स्पिन डालने के
तरीके बताए हो, मगर वह अपने बेटे अंगद बेदी को क्रिकेटर नहीं बना सके।
शायद इसका मलाल उनको ताउम्र रहा होगा। आज अंगद एक माॅडल है उनकी पत्नी भी
वाॅलीवुड की एक्टर है।
यादें तो बहुत है मगर प्रत्येक को जगह मिल जाए ऐसा हो नहीं सकता। हमें भी
एक जिंदा दिल इंसान रहे बिशन सिंह बेदी के निधन पर दुख है। हम और हमारा
मीडिया उनको अपनी श्रद्वांजलि देता है।