प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर्तव्य भवन के शुभारंभ के अवसर पर बुधवार को एक एक सार्वजनिक कार्यक्रम को संबोधित किया। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि यह केवल कुछ नये भवन और सामान्य मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं, अमृत काल में इन्हीं भवनों में विकसित भारत की नीतियां बनेंगी। विकसित भारत के लिए यहीं से महत्वपूर्ण निर्णय होंगे। आने वाले दशकों में यहीं से राष्ट्र की दिशा तय होगी।

कर्तव्य भवन देशवासियों के सपनों को साकार करने की तपोभूमि
उन्होंने कहा, कर्तव्य भवन सिर्फ इमारत का नाम भर नहीं है। ये करोड़ों देशवासियों के सपनों को साकार करने की तपोभूमि है। कर्तव्य पथ पर अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने कहा,, हम आधुनिक भारत के निर्माण से जुड़ी उपलब्धियों के साक्षी बन रहे हैं। कर्तव्य पथ, नया संसद भवन, नया रक्षा भवन, भारत मंडपम, यशोभूमि, राष्ट्रीय युद्ध स्मारक, नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा और अब कर्तव्य भवन – ये सिर्फ साधारण सुविधाएं नहीं हैं। यहां विकसित भारत की नीतियां बनेंगी, महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाएंगे। आने वाले समय में राष्ट्र की दिशा यहीं से तय होगी। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, हमने काफी विचार-विमर्श के बाद इस भवन को ‘कर्तव्य भवन’ नाम दिया। कर्तव्य पथ, कर्तव्य भवन नाम हमारे लोकतंत्र, संविधान के मूल मूल्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
नागरिक देवो भव: का मंत्र है कर्तव्य
उन्होंने कहा, कर्तव्य शब्द का मतलब भारतीय संस्कृति में केवल दायित्व तक सीमित नहीं है। कर्तव्य हमारे देश के कर्मप्रधान दर्शन की मूलभावना है। स्व की सीमा से परे सर्वस्व की दृष्टि कर्तव्य की वास्तविक परिभाषा है। इसलिए कर्तव्य सिर्फ इमारत का नाम भर नहीं है। ये करोड़ों देशवासियों के सपनों को साकार करने की तपोभूमि है। कर्तव्य ही आरंभ है। कर्तव्य है प्रारब्ध है। करुणा और कर्मणता के स्नेहसूत्र में बना कर्म ही तो कर्तव्य है। सपनों का साथ है कर्तव्य। संकल्पों की आस है कर्तव्य। परिश्रम की पराकाष्ठा है कर्तव्य। हर जीवन में ज्योत जला दे, वहीं इच्छा शक्ति है कर्तव्य। करोड़ों देशवासियों की रक्षा का आधार है कर्तव्य। मां भारती की प्राण उर्जा का ध्वजवाहक है कर्तव्य। नागरिक देवो भव: का मंत्र है कर्तव्य। राष्ट्र के प्रति भक्तिभाव से किया हर कार्य है कर्तव्य।
100 साल पुरानी इमारत में चल रहा था गृह मंत्रालय
आजादी के बाद दशकों तक देश की प्रशासनिक मशीनरी उन इमारतों से चलाई जाती रही है, जो ब्रिटिश शासन काल में बनी थीं। आप भी जानते हैं दशकों पहले बने इन प्रशासनिक भवनों में वर्किंग कंडीशन कितनी खराब थी। अभी वीडियो में कुछ झलक भी देखी हमने। यहां काम करने वालों के लिए न पर्याप्त जगह है, न रोशनी है, न जरूरी वेंटिलेशन है। आप कल्पना कर सकते हैं, गृह मंत्रालय जैसा महत्वपूर्ण मंत्रालय करीब सौ साल से एक ही इमारत में अपर्याप्त साधनों से चल रहा था।
किराए के डेढ़ हजार करोड़ रुपये बचा पाएगी सरकार
प्रधानमंत्री ने कहा, काम की वजह से कर्मचारियों का यहां से वहां आना-जाना होता है। अनुमान है कि हर रोज आठ से दस हजार कर्मचारियों को एक मंत्रालय से दूसरे मंत्रालय में आना जाना पड़ता है। इसमें भी सैकड़ों गाड़ियों की आवाजाही होती है। खर्च होता है। सड़कों पर ट्रैफिक बढ़ता है। कितना समय खराब होता है। इन सबसे काम की दक्षता नहीं रहती है। इक्कीसवीं सदी के भारत को 21वीं सदी की व्यवस्थाएं चाहिए। इमारतें भी चाहिए। ऐसी इमारतें जो तकनीकी, सुरक्षा और सुविधा के लिहाज से बेहतरीन हो। जहां कर्मचारी सहज हो। फैसले तेज हो और सेवाएं सुगम हो। इसलिए कर्तव्य पथ के आसपास एक समग्र दृष्टि के साथ कर्तव्य भवन जैसी विशाल इमारतों का निर्माण किया जा रहा है। ये तो पहला कर्तव्य भवन पूरा हुआ है। अभी कई कर्तव्य भवनों का निर्माण तेजी से चल रहे हैं। ये कार्यालय जब आसपास होंगे तो इससे कर्मचारियों को काम करने के लिए सही माहौल मिलेगा। जरूरी सुविधाएं मिलेंगी। उनका कुल वर्क आउटपुट भी बढ़ेगा और सरकार डेढ़ हजार करोड़ रुपये किराए पर खर्च कर रही है, वह भी बचेगा