नई दिल्ली/जोशीमठ. ये किस्सा उत्तराखंड में गढ़वाल के ऊंचे पहाड़ों के भीतर का है। तारीख थी 24 दिसंबर 2009; बड़े-बड़े शहरों की धरती के नीचे मेट्रो ट्रेन के लिए चुपचाप सुरंग खोद देने वाली एक बड़ी टनल बोरिंग मशीन (TBM) अचानक फंस गई। सामने से हजारों लीटर साफ पानी बहने लगा। महीनों बीत गए, लेकिन काबिल से काबिल इंजीनियर न इस पानी को रोक सके और न TBM चालू हुई।
दरअसल, इंसानों की बनाई इस मशीन ने प्रकृति के बनाए एक बड़े जल भंडार में छेद कर दिया था। लंबे समय तक रोज 6 से 7 करोड़ लीटर पानी बहता रहता है। धीरे-धीरे ये जल भंडार खाली हो गया। यह जल भंडार जोशीमठ के ऊपर पास ही बहने वाली अलकनंदा नदी के बाएं किनारे पर खड़े पहाड़ के 3 किलोमीटर अंदर था।
हिंदुओं और सिखों के पवित्र तीर्थ बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब का गेटवे कहा जाने वाला ये वही जोशीमठ नगर है, जिसके धंसने की खबरें इन दिनों में सुर्खियों में हैं। इस नगर के 603 मकानों में दरारें पड़ चुकी हैं। 70 परिवारों को दूसरी जगह भेजा जा चुका है। बाकी लोगों से सरकारी राहत शिविरों में जाने को कहा गया है।
जोशीमठ वाले जलभंडार के खाली होने से इलाके के कई छोटे झरने और पानी के स्त्रोत सूख गए हैं। एक्सपर्ट का कहना है कि बिना पानी जोशीमठ के नीचे के जमीन भी सूख गई है। इसी वजह से दरके हुए पहाड़ों के मलबे पर बसा जोशीमठ धंस रहा है। उनका दावा है कि अब इस नगर को तबाह होने से बचाना मुश्किल है।
TBM मशीन से ये सुरंग गढ़वाल के पास जोशीमठ में बन रहे विष्णुगढ़ हाइ़ड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट के लिए खोदी जा रही थी। यह नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन यानी NTPC का प्रोजेक्ट है।
ग्लेशियर पर टूटे पहाड़ों के मलबे पर बसा जोशीमठ, इसलिए खतरा ज्यादा
जूलॉजिस्ट और डिपार्टमेंट ऑफ फॉरेस्ट्री रानीचौरी में HOD एसपी सती कहते हैं कि जोशीमठ टूटे हुए पहाड़ों के जिस मलबे पर बसा है वह अब तेजी धंस रहा है और अब इसे किसी भी तरह से रोका नहीं जा सकता है।
बहुत जल्द ऐसा भी हो सकता है कि एक साथ 50 से 100 घर गिर जाएं। इसलिए सबसे जरूरी काम है यहां से लोगों को सुरक्षित जगह पर शिफ्ट किया जाए। ये कड़वा सच है कि जोशीमठ को धंसने से अब कोई नहीं बचा सकता है
माना जाता है कि जोशीमठ शहर मोरेन पर बसा हुआ है, लेकिन यह सच नहीं। जोशीमठ मोरेन पर नहीं बल्कि लैंडस्लाइड मटेरियल पर बसा हुआ है। मोरेन सिर्फ ग्लेशियर से लाए मटेरियल को कहते हैं, जबकि ग्रैविटी के चलते पहाड़ों के टूटने से जमा मटेरियल को लैंडस्लाइड मटेरियल कहते हैं। जोशीमठ शहर ऐसे ही मटेरियल पर बसा हुआ है।
करीब एक हजार साल पहले लैंडस्लाइड हुआ था। तब जोशीमठ कत्युरी राजवंश की राजधानी थी। इतिहासकार शिवप्रसाद डबराल ने अपनी किताब उत्तराखंड का इतिहास में बताया है कि लैंडस्लाइड के चलते जोशीमठ की पूरी आबादी को नई राजधानी कार्तिकेयपुर शिफ्ट किया गया था। यानी जोशीमठ एक बार पहले भी शिफ्ट किया जा चुका है।
84 साल पहले से ही दी जा रही है जोशीमठ में तबाही की चेतावनी
साल 1939 : स्विस एक्सपर्ट ने किताब में किया था दावा
साल 1939 में एक किताब छपी, जिसका नाम था- Central Himalaya, Geological observations of the Swiss expedition, इसके स्विस एक्सपर्ट और लेखक हैं प्रो. अर्नोल्ड हेम और प्रो. आगस्टो गैंसर। किताब में दोनों ने 84 साल पहले ही लिखा था कि जोशीमठ लैंडस्लाइड के ढेर पर बसा हुआ है।
साल 1976 : मिश्रा कमेटी ने कंस्ट्रक्शन को लेकर चेताया था
1976 में भी जोशीमठ में लैंडस्लाइड की कई घटनाएं हुई थीं। उस समय के गढ़वाल कमिश्नर महेश चंद्र मिश्रा के नेतृत्व में सरकार ने एक कमेटी बनाई थी। उन्होंने रिपोर्ट में निर्माण कार्यों पर पूरी तरह से रोक लगाने की सिफारिश की थी। साथ ही कहा था कि बहुत जरूरत हो तो पूरी रिसर्च के बाद ही इसे किया जाना चाहिए।
इरैटिक बोल्डर को डिस्टर्ब नहीं करें यानी तोड़े नहीं। इरैटिक बोल्डर यानी मकान से भी बड़े पत्थर। इस रिपोर्ट में सीधे तौर पर बड़े कंस्ट्रक्शन और ब्लास्टिंग नहीं करने की सलाह दी गई थी। हालांकि, सरकार ने सलाह मानने के बजाय इस रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया। इसके बाद यहां पर हाइ़ड्रो पावर प्रोजेक्ट लगाए जाते हैं और सड़क का चौड़ीकरण किया जाता है।
साल 2010 : जमीन धंसने की चेतावनी दी थी
साल 2010 में भी एक रिपोर्ट में जोशीमठ के टाइम बम बनने की बात कही गई थी। यह रिपोर्ट 25 मई 2010 को करेंट साइंस जर्नल में पब्लिश हुई थी। करेंट साइंस जर्नल की स्थापना 1932 में सीवी रमन ने की थी। Disaster looms large over Joshimath हेडलाइन से छपी इस रिपोर्ट में बताया गया था कि गढ़वाल में जोशीमठ के करीब विष्णुगढ़ हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट के लिए टनल बोरिंग मशीन यानी TBM सुरंग की खुदाई कर रही थी।
24 दिसंबर 2009 को टनल बोरिंग मशीन एक जल स्रोत को पंक्चर कर देती है। इसकी वजह से यहां पर 700 से 800 लीटर पानी प्रति सेकेंड निकलने लगा। यानी एक दिन में 6 से 7 करोड़ लीटर पानी निकलने लगा, जो 20 से 30 लाख लोगों पर्याप्त होता है।
रिपोर्ट में चेताते हुए लिखा गया था कि प्राकृतिक रूप से जमा पानी के इस तरह बह जाने से बड़ी आपदा का अंदेशा है। सुरंग से निकलने वाले पानी की वजह से आसपास के झरने सूख जाएंगे। जोशीमठ के आसपास की बस्तियों को गर्मी के मौसम में पीने के पानी की कमी का सामना करना पड़ेगा। कई झरनों के सूखने की भी सूचना है।
अचानक और बड़े पैमाने पर पानी बहने से क्षेत्र में जमीने तेजी से धंसना शुरू हो सकती हैं। इससे जोशीमठ का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। जियोलॉजिस्ट और उत्तराखंड स्पेस एप्लिकेशन सेंटर के निदेशक प्रोफेसर एमपीएस बिष्ट ने यह रिपोर्ट तैयार की थी। उन्होंने इस रिपोर्ट को डिजास्टर मिटिगेशन एंड मैनेजमेंट सेंटर उत्तराखंड को भेजा था।