विजय कुमार
नई दिल्ली,24 अगस्त। भारतीय खेल मंत्रालय और भारतीय ओलंपिक संघ की अपरिपक्ता के कारण विश्व कुश्ती संस्था यूडब्ल्यूडब्ल्यू ने भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) को निलंबित कर दिया है। इस निलंबन तक भारतीय पहलवान किसी भी प्रतियोगिता में ध्वज तले नहीं खेल पाएंगे। इसका पहला असर विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में दिखेगा जहां भारतीय पहलवान ध्वज तले नहीं खेल सकेंगे।
विश्व कुश्ती चैंपियनशिप 16 सितंबर से सर्बिया के बेलग्रेड में होगी जहां भारतीय पहलवान तटस्थ खिलाड़ी के रूप में हिस्सा लेंगे। यह चैंपियनशिप अगले साल होने वाले पेरिस ओलंपिक के लिए क्वालिफाइंग प्रतियोगिता भी है।
मालूम हो कि भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूष्ण सिंह पर पहलवानों द्वारा शोषण के आरोप लगाए थे। इस विवाद के चलते फेडरेशन के तो चुनाव टाले ही गए, बल्कि एक के बाद एक विवाद खडा होता चला गया। इसमें भारतीय कुश्ती महासंघ के चुनाव भी शामिल है। भारतीय कुश्ती महासंघ में उठे विवादों के उपरांत भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) ने कुश्ती का कामकाज देखने के लिए 27 अप्रैल को तदर्थ समिति की नियुक्ति कर दी थी। वहीं भूपेंद्र सिंह बाजवा की अगुवाई वाली तदर्थ समिति को 45 दिनों के अंदर चुनाव कराने की समय सीमा दी गई थी,मगर अगर मगर के कारण ऐसा हो नहीं सका। हालांकि भारतीय कुश्ती महासंघ के चुनाव पहले सात मई को होने तय थे, लेकिन खेल मंत्रालय पहलवानों के विरोध के कारण इस प्रक्रिया को अमान्य करार दिया था। वहीं दूसरा कई असंतुष्ट और असंबद्ध राज्य इकाइयां मतदान में भाग लेने का अधिकार हासिल करने के लिए अदालत की शरण में गईं जिसके कारण चुनाव टलते चलगए अंत में उसको स्थगित करना पडा।
इस बीच आईओए की तदर्थ समिति ने 12 अगस्त को मतदान कराने का फैसला किया, लेकिन पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हरियाणा कुश्ती संघ (एचडब्ल्यूए) की याचिका पर चुनाव को 28 अगस्त तक के लिए टाल दिया। अगली सुनवाई 28 अगस्त को होगी।
हालांकि उक्त विवादों के बीच यूडब्ल्यूडब्ल्यू ने 28 अप्रैल को चेताया था कि अगर समय पर चुनाव नहीं कराए जाते हैं तो डब्ल्यूएफआई को निलंबित किया जा सकता है। सूत्रों के अनुसार ‘यूडब्ल्यूडब्ल्यू ने बुधवार की रात को तदर्थ समिति को सूचित किया कि कार्यकारिणी के चुनाव नहीं होने के चलते डब्ल्यूएफआई को निलंबित कर दिया गया है। इस निलंबन को लेकर कई पहलवानों का कहना है अगर खेल मंत्रालय और तदर्थ कमेटी चुनाव प्रक्रिया और विवाद को सही ढंग से संभालते तो इससे बचा जा सकता था। मगर खेल मंत्रालय और कमेटी दोनों ने ही केवल तमाशा देखने का काम किया और अब पहलवानों को अपने देश की पहचान हटाकर प्रतियोगिता में भाग लेना होगा।