अरब सागर में उठा शक्तिशाली चक्रवात बिपरजॉय भारत की तरफ बढ़ रहा है। पिछले 24 घंटे में इसने और विकराल रूप अख्तियार कर लिया है। 14-15 जून तक ये गुजरात के तट से टकराएगा।
ये किन इलाकों में तबाही लाएगा, कितने दिनों तक रहेगा, कैसे इसका नाम पड़ा और ये चक्रवात बनते कैसे हैं; भास्कर एक्सप्लेनर में ऐसे ही 10 जरूरी सवालों के जवाब जानेंगे…
1. चक्रवात बिपरजॉय कहां से उठा, रूट क्या है और ये भारत के किन इलाकों से कब टकराएगा?
चक्रवात बिपरजॉय 6 जून 2023 को अरब सागर में उठा था। शुरुआती 6 दिनों तक ये कराची की तरफ बढ़ रहा था, लेकिन अब रास्ता बदलकर गुजरात की तरफ बढ़ रहा है। फिलहाल इसके बढ़ने की रफ्तार 8 किमी/घंटा है।
12 जून की दोपहर 12 बजे तक ये गुजरात के पोरबंदर से 320 किमी दूर था। मौसम विभाग का अनुमान है कि 14-15 जून को बिपरजॉय के गुजरात के तटीय इलाकों से टकराने की आशंका है। इस दौरान 150 किमी/घंटे की रफ्तार से हवाएं चल सकती हैं। 16 जून को ये चक्रवात धीमा पड़कर बेअसर हो जाएगा।
6 जून को उठे इस चक्रवात का असर 10 दिनों तक रह सकता है। यह हाल के दिनों में अब तक का सबसे लंबे समय तक रहने वाला तूफान है। समुद्र के ऊपर एक चक्रवाती तूफान जितने अधिक समय तक रहता है, उतनी ही ज्यादा ऊर्जा और नमी जमा होने की संभावना होती है। जिससे तूफान के और अधिक खतरनाक होने और जमीन से टकराने के बाद नुकसान पहुंचाने की संभावना बढ़ जाती है।
2. चक्रवात बिपरजॉय के रास्ते में पड़ने वाले इलाकों में कितनी तबाही मच सकती है?
14-15 जून को कच्छ, देवभूमि द्वारका, पोरबंदर, जामनगर, मोरबी, जूनागढ़ और राजकोट समेत गुजरात के कई जिले चक्रवात की चपेट में आएंगे। यहां 14 और 15 जून को हैवी रेनफॉल हो सकता है। 16 जून को ये चक्रवात नॉर्थ गुजरात से सटे राजस्थान के इलाकों की तरफ बढ़ेगा। यहां भी वेरी हैवी रेनफॉल होने की संभावना है। बिपरजॉय से प्रभावित इलाकों में 15 जून तक 95 ट्रेनें कैंसिल रहेंगी।
गुजरात में सौराष्ट्र और कच्छ इलाके में 12 जून को अधिकतम 65 किमी/घंटे की हवाएं चलेंगी। 15 जून को इन इलाकों में हवाओं की रफ्तार 150 किमी/घंटा तक पहुंच सकती है। इसके बाद रफ्तार थमेगी। 16 जून को नॉर्थ गुजरात और साउथ राजस्थान में अधिकतम 65 किमी/घंटे की रफ्तार से हवाएं चल सकती हैं।
15 जून को बिपरजॉय के टकराने के बाद चलने वाली हवाओं और बारिश से गुजरात के तटीय जिलों को ये नुकसान होने की आशंका है…
- छप्पर-झोपड़ी वाले घर पूरी तरह तबाह हो जाएंगे। कच्चे घरों को भारी डैमेज होगा और पक्के मकानों को भी कुछ नुकसान हो सकता है।
- बिजली के खंभे और कम्युनिकेशन टावर्स झुक सकते हैं या पूरी तरह उखड़ सकते हैं।
- कच्ची और पक्की सड़कें डैमेज हो जाएंगीं। रेलवे परिवहन, बिजली के तारों और सिग्ननलिंग सिस्टम में बाधा हो सकती है।
- खड़ी फसलों को व्यापक नुकसान होगा। आम जैसे फलदार पेड़ पूरी तरह झड़ जाएंगे। किनारों से बंधी छोटी नावें भी बह सकती हैं।
- खारे पानी की वजह से विजिबिलिटी बुरी तरह प्रभावित होगी।
3. जिन इलाकों को बिपरजॉय हिट करेगा, वहां तैयारियां कैसी हैं?
गुजरात में SDRF की 10 टीमें तैनात हो गई हैं। NDRF की 12 टीमें तैनात हैं और 3 एडिशनल टीमों को स्टैंडबाय पर रखा गया है। मछुआरों को समुद्र में जाने से रोका गया है। 21 हजार से ज्यादा नावें अब तक पार्क हो चुकी हैं। इनके अलावा फिशरीज, हेल्थ और एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट की टीमें भी तैनात रहेंगी।
मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने एडवांस प्लानिंग और डिजास्टर मैनेजमेंट की जिम्मेदारी सीनियर मिनिस्टर्स को सौंपी है। इनमें ऋषिकेश पटेल को कच्छ जिले की, कुंवरजी बावलिया को पोरबंदर की, मुलु भाई बेरा को जामनगर की, हर्ष सांघवी को देवभूमि द्वारका की, जगदीश विश्वकर्मा को जूनागढ़ जिले की और पुरुषोत्तम सोलंकी को गिर सोमनाथ जिले की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इन मंत्रियों को फौरन ग्राउंड पर पहुंचने के निर्देश दिए गए हैं।
15 जून से पहले ही 6 जिलों में शेल्टर होम बना लिए जाएंगे। समुद्र तट से 5 से 10 किलोमीटर के इलाके में रहने वाले लोगों को निकालकर सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट किया जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 12 जून को एक इमरजेंसी मीटिंग की। इसमें गृह मंत्रालय, NDRF और सेना के अधिकारी मौजूद रहे। गृह मंत्री अमित शाह 13 जून को दिल्ली में राज्यों और यूनियन टेरिटरीज के आपदा प्रबंधन विभाग के मंत्रियों के साथ बैठक करेंगे।
4. इसके रूट में न पड़ने वाले अन्य राज्यों में क्या इम्पैक्ट देखने को मिल सकता है?
एक्सपर्ट्स का मानना है कि चक्रवात बिपरजॉय प्रमुख रूप से नॉर्थ गुजरात और साउथ राजस्थान को प्रभावित करेगा। इससे जुड़े आसपास के इलाकों में तेज हवाएं और बारिश हो सकती हैं। बाकी देश पर इसका कोई खास असर नहीं होगा। देश के बाकी हिस्सों में अगले 3 दिनों के मौसम का पूर्वानुमान देख लीजिए…
नॉर्थ ईस्टः अगले तीन दिनों तक नॉर्थ-ईस्ट के ज्यादातर राज्यों में भारी बारिश का अनुमान है।
पूर्वी भारतः पश्चिम बंगाल और सिक्किम में अगले तीन दिनों में भारी बारिश से अत्यधिक भारी बारिश का अनुमान है।
उत्तर पश्चिम भारतः हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड के कुछ इलाकों में तूफान आएगा। राजस्थान के कुछ इलाकों में भी थंडरस्टॉर्म की संभावना है।
पश्चिमी भारतः गोवा, महाराष्ट्र के कुछ इलाकों में भारी बारिश होगी। गुजरात के सौराष्ट्र और कच्छ इलाकों में तो चक्रवात का भरपूर असर देखने को मिलेगा।
दक्षिणी भारतः केरल और कर्नाटक में अगले 3 दिनों तक भारी बारिश जारी रहेगी।
अगले कुछ दिनों तक बिहार, झारखंड, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और ओडिशा के कुछ इलाकों में हीटवेव जारी रहेगी। तमिलनाडु, मध्य महाराष्ट्र और मराठवाड़ा इलाकों में गर्मी और उमस रहेगी।
5. देश में मानसून भी आगे बढ़ रहा है? क्या बिपरजॉय की वजह से मानसून की रफ्तार पर कोई असर पड़ सकता है?
बिपरजॉय तूफान के चलते मानसून के और एडवांस यानी तेज होने की संभावना है। मौसम वैज्ञानिक डीपी दुबे के मुताबिक बिपरजॉय तूफान से सारी नमी गुजरात से होते हुए महाराष्ट्र, एमपी, राजस्थान की तरफ बढ़ेगी। इससे इन इलाकों में मानसून तेजी से पहुंच सकता है। इन इलाकों में प्री-मानसून एक्टिविटी बढ़ेगी और 15 जून के बाद बारिश होने की संभावना है।
6. चक्रवात क्या होते हैं और ये बनते कैसे हैं?
साइक्लोन शब्द ग्रीक भाषा के साइक्लोस (Cyclos) से लिया गया है, जिसका अर्थ है सांप की कुंडलियां। इसे ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में ट्रॉपिकल साइक्लोन समुद्र में कुंडली मारे सांपों की तरह दिखाई देते हैं।
चक्रवात एक गोलाकार तूफान (सर्कुलर स्टॉर्म) होते हैं, जो गर्म समुद्र के ऊपर बनते हैं। जब ये चक्रवात जमीन पर पहुंचते हैं, तो अपने साथ भारी बारिश और तेज हवाएं लेकर आते हैं। ये हवाएं उनके रास्ते में आने वाले पेड़ों, गाड़ियों और कई बार तो घरों को भी तबाह कर सकती हैं।
साइक्लोन बनने का प्रोसेस कुछ इस तरह है…
- चक्रवात समुद्र के गर्म पानी के ऊपर बनते हैं। समुद्र का तापमान बढ़ने पर उसके ऊपर मौजूद हवा गर्म और नम होने की वजह से ऊपर उठती है। इससे उस हवा का एरिया खाली हो जाता है और नीचे की तरफ हवा का प्रेशर यानी वायु दाब कम हो जाता है।
- इस खाली जगह को भरने के लिए आसपास की ठंडी हवा वहां पहुंचती है। इसके बाद ये नई हवा भी गर्म और नम होकर ऊपर उठती है।
- इसका एक साइकिल शुरू हो जाता है, जिससे बादल बनने लगते हैं। पानी के भाप में बदलने से और भी बादल बनने लगते हैं। इससे एक स्टॉर्म साइकिल या तूफान चक्र बन जाता है, जो धरती के घूमने के साथ ही घूमते रहते हैं।
- स्टॉर्म सिस्टम के तेजी से घूमने की वजह से उसके सेंटर में एक आई बनता है। तूफान के आई को उसका सबसे शांत इलाका माना जाता है, जहां एयर प्रेशर सबसे कम होता है।
- ये स्टॉर्म सिस्टम हवा की स्पीड 62 किमी/घंटे होने तक ट्रॉपिकल स्टॉर्म कहलाते हैं। हवा की रफ्तार 120 किमी/घंटे पहुंचने पर ये स्टॉर्म साइक्लोन बन जाते हैं।
- साइक्लोन आमतौर पर ठंडे इलाकों में नहीं बनते है, क्योंकि इन्हें बनने के लिए गर्म समुद्री पानी की जरूरत होती है। लगभग हर तरह के साइक्लोन बनने के लिए समुद्र के पानी के सरफेस का तापमान 25-26 डिग्री के आसपास होना जरूरी होता है।
- इसीलिए साइक्लोन को ट्रॉपिकल साइक्लोन भी कहा जाता है। ट्रॉपिकल इलाके आमतौर पर गर्म होते हैं, जहां साल भर औसत तापमान 18 डिग्री से कम नहीं रहता।
7. चक्रवात, टाइफून, हरिकेन और टॉरनेडो में क्या अंतर है?
स्ट्रॉर्म या तूफान वातावरण में एक तरह का डिस्टर्बेंस होता है, जो तेज हवाओं के जरिए सामने आता है और उसके साथ बारिश, बर्फ या ओले पड़ते हैं। जब ये धरती पर होते हैं तो आम तूफान कहलाते हैं, लेकिन समुद्र से उठने वाले स्टॉर्म को साइक्लोन कहते हैं। साइक्लोन आम स्टॉर्म से ज्यादा तीव्र और खतरनाक होते हैं।
साइक्लोन, हरिकेन और टाइफून तीनों एक ही चीज होते हैं और इन्हें ट्रॉपिकल साइक्लोन भी कहा जाता है। दुनिया भर में साइक्लोन को अलग-अलग नामों से बुलाया जाता है।
जैसे- उत्तरी अमेरिका और कैरेबियन आइलैंड में बनने वाले साइक्लोन को हरिकेन, फिलीपींस, जापान और चीन में आने वाले साइक्लोन को टाइफून और ऑस्ट्रेलिया और हिंद महासागर यानी भारत के आसपास आने वाले तूफान को साइक्लोन कहा जाता है।
समुद्रों के लिहाज से देखें तो अटलांटिक और उत्तर पश्चिम महासागरों में बनने वाले साइक्लोन हरिकेन कहलाते हैं। उत्तर पश्चिम प्रशांत महासागर में बनने वाले साइक्लोन टाइफून कहलाते हैं।
वहीं दक्षिण प्रशांत महासागर और हिंद महासागर में उठने वाले तूफान साइक्लोन कहलाते हैं। इसी वजह से भारत के आसपास के इलाकों में आने वाले समुद्री तूफान साइक्लोन कहलाते हैं।
वहीं टॉरनेडो भी भयानक तूफान होते हैं, लेकिन ये साइक्लोन नहीं होते हैं क्योंकि ये समुद्र के बजाय ज्यादातर धरती पर ही बनते हैं। टॉरनेडो सबसे ज्यादा अमेरिका में आते हैं।