गुजरात के अहमदाबाद में पहली बार एक मरीज के दिल का प्रत्यारोपण कुछ इस तरह से किया गया कि उसे एक भी यूनिट ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरुरत नहीं पड़ी. आमतौर पर सर्जरी के दौरान मरीज को ब्ल़ड दिया जाता है क्योंकि सर्जरी के दौरान काफी खून बह जाता है. लेकिन एक नई टेक्नीक के इस्तेमाल और सर्जरी के तरीके में बदलाव करके डॉक्टरों ने यह चमत्कार करके दिखाया है. दरअसल जितनी बड़ी और लंबी सर्जरी होती है मरीज का खून उतना ही बहने का अंदेशा होता है. लेकिन सबसे मुश्किल माने जाने वाले ऑपरेशन हार्ट ट्रांसप्लांट को भारतीय डॉक्टरों ने ऐसे अंजाम दिया कि मरीज को एक यूनिट खून की जरुरत भी नहीं पड़ी.
Blood less heart transplant- एशिया का पहला ब्लड लेस हार्ट ट्रांसप्लांट
अहमदाबाद के Marengo CIMS Hospital में इस सर्जरी का प्रोसीजर करीब महीने भर पहले हुआ. जानकारी के मुताबिक अहमदाबाद निवासी चंद्रप्रकाश गर्ग 52 साल के हैं. जिनका हार्ट फेल हो चुका था. उन्हें 33 साल के एक डोनर का दिल मिला जिसकी रोड एक्सीडेंट में मौत हो चुकी थी. अस्पताल के हार्ट ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ धीरेन शाह के मुताबिक एशिया में अभी तक बिना ब्लड ट्रांसफ्यूजन के सर्जरी करना वो भी हार्ट ट्रांसप्लांट जैसे मुश्किल प्रोसीजर को करना मुमकिन नहीं हो सका है.
डॉक्टरों ने किया कमाल
आपको बताते चलें कि इस ऑपरेशन में सबसे पहले अमेरिका से आई एक खास मशीन के जरिए सर्जरी के दौरान खून के पतले और गाढ़े होने पर नजर रखी गई. यह मशीन ये बता पा रही है कि मरीज का कितना खून बह सकता है और किस वजह से खून कम या ज्यादा बह रहा है. तो डॉक्टरों ने सर्जरी से पहले और सर्जरी के दौरान मरीज की हालत और उसके ब्लड का एनालिसिस किया. यानी खून कितना जम रहा है कितना पतला हो रहा? किन कारणों से पतला हो सकता है और कैसे खून के सही फ्लो को बरकरार रखा जाए, ऐसी बातों पर फोकस किया गया.
दो घंटे की सर्जरी एक घंटे में
लिवर कैसे खून को जमने या पतला करते वक्त काम करेगा, ये सब बातें सर्जरी के दौरान भी देखी जाती रही. सर्जरी का टाइम कम से कम रखा गया. सीने को खोलने, दिल को लगाने और वापस बंद करने में कुल एक घंटे का वक्त लिया गया. आमतौर पर इसमें दो घंटे लगते हैं. ब्लड को एक ऑर्गन यानी अंग ही माना जाता है. इसे किसी शरीर में देने के वही खतरे होते हैं जो किसी दूसरे का ऑर्गन एक दूसरे शरीर में डालने के होते हैं.