संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) का माहौल हमेशा से ही दुनिया की सबसे बड़ी राजनैतिक हलचल का केंद्र रहा है। अगले हफ्ते जब दुनियाभर के नेता यहां जुटेंगे, तो सबकी नजरें यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की और उनके अमेरिकी समकक्ष डोनाल्ड ट्रंप की मुलाकात पर टिकी होंगी। इस बैठक को सिर्फ दो नेताओं की औपचारिक बातचीत नहीं, बल्कि रूस और पश्चिमी देशों के बीच गहराते टकराव के भविष्य का संकेत माना जा रहा है।
जेलेंस्की ने इस मुलाकात की घोषणा ऐसे वक्त पर की, जब रूस ने यूक्रेन पर अपने हमले तेज कर दिए हैं। रात के अंधेरे में रूस की ओर से छोड़ी गई मिसाइलों और ड्रोन की गूंज अब यूक्रेन के लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन चुकी है। हाल ही में हुए सबसे बड़े हमले में रूस ने 40 मिसाइलें और लगभग 580 ड्रोन दागे। इस हमले ने तीन लोगों की जान ले ली और दर्जनों को घायल कर दिया। यूक्रेन के लिए यह सिर्फ एक और हमला नहीं, बल्कि यह याद दिलाने वाला संदेश था कि युद्ध अभी खत्म नहीं हुआ है और रूस का इरादा पीछे हटने का नहीं। जेलेंस्की इस युद्ध को केवल यूक्रेन की लड़ाई नहीं मानते। उनके लिए यह पूरा यूरोप है जो दांव पर लगा हुआ है। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर साफ़ लिखा “अब हम अमेरिका से और सख्त प्रतिबंधों की उम्मीद कर रहे हैं। यूरोप अपनी भूमिका निभा रहा है।” इस संदेश के पीछे उनकी मंशा साफ़ थी: अमेरिका से न सिर्फ आर्थिक बल्कि दीर्घकालिक सुरक्षा गारंटी हासिल करना।
लेकिन यहाँ मामला इतना सीधा भी नहीं है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पहले ही संकेत दे चुके हैं कि वह रूस पर बड़े प्रतिबंध लगाने को तैयार हैं। मगर, उनकी एक शर्त है नाटो के सहयोगी देश मिलकर रूस से तेल खरीदना बंद करें। यह शर्त जितनी तार्किक दिखती है, उतनी ही कठिन भी है, क्योंकि कई यूरोपीय देश अब भी रूस के ऊर्जा संसाधनों पर निर्भर हैं। ट्रंप एक ओर युद्धविराम की कोशिशें कर रहे हैं, तो दूसरी ओर वे यूरोपीय सहयोगियों पर ज़िम्मेदारी डाल रहे हैं।ज़ेलेंस्की की चुनौती यहीं बढ़ जाती है। वह जानते हैं कि अगर युद्धविराम होता भी है, तो भविष्य में रूस को रोकने के लिए मजबूत सुरक्षा व्यवस्था ज़रूरी होगी। इसलिए न्यूयॉर्क की बैठक में उनका सबसे बड़ा एजेंडा यही होगा अमेरिका से दीर्घकालिक सुरक्षा गारंटी।