बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ बुलडोजर एक्शन पर रोक लगाने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा कि कार्यपालिका न्यायाधीश नहीं बन सकती है। बिना प्रक्रिया आरोपी का घर तोड़ना असंवैधानिक है। न्यायालय ने ध्वस्तीकरण को लेकर कुछ दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
देश की सबसे बड़ी अदालत ने बुलडोजर कार्रवाई को लेकर अहम फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को घर छीनने को मौलिक अधिकार का हनन बताया। इसने कहा कि आरोपी एक व्यक्ति है तो पूरा परिवार दोषी कैसे और केवल आपराधिक आरोपों/दोषसिद्धि के आधार पर संपत्तियां नहीं गिराई जा सकतीं। इसके साथ ही न्यायालय ने संपत्तियों को ध्वस्त करने से पहले प्रशासन द्वारा पालन किये जाने के लिए दिशा-निर्देश जारी किये हैं जिनमें अवैध संपत्तियों की जानकारी के लिए एक पोर्टल बनाना भी शामिल है। अदालत की तरफ से कहा गया है कि गलत कार्रवाई करने पर अधिकारी पर एक्शन होगा।
अदालत से इतर भी बुलडोजर एक्शन हाल के दिनों में चर्चा का विषय बना है। राजनीतिक दलों में इसको लेकर पक्ष और विपक्ष में तर्क दिए जाते रहे हैं। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने 17 सितंबर को एक आदेश जारी कर देशभर में तोड़फोड़ की कार्रवाई पर अंतरिम रोक लगा दी थी। अब इसी मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुना दिया है जिस पर राजनीतिक प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गई हैं।
लडोजर एक्शन का मामला क्या है?
दरअसल, अप्रैल 2022 में दिल्ली के जहांगीरपुरी में होने वाले ध्वस्तीकरण अभियान चलाया गया था। जहांगीरपुरी की घटना को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गईं, जिसके बाद इस अभियान पर रोक लगा दी गई। हालांकि, याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की कि वह आदेश दे कि कोई अधिकारी दंड के रूप में बुलडोजर कार्रवाई का सहारा नहीं ले सकते।
अगस्त में मध्य प्रदेश और राजस्थान में अधिकारियों द्वारा बुलडोजर की कार्रवाई के खिलाफ दो याचिकाएं न्यायालय में दायर की गई थीं। इनमें से एक उदयपुर के एक मामले से संबंधित था, जहां एक व्यक्ति का घर इसलिए गिरा दिया गया क्योंकि उसके किराएदार के बेटे पर अपराध का आरोप था।
उत्तर प्रदेश में भी ऐसे मामले को लेकर याचिकाकर्ता कोर्ट पहुंचे थे। उन्होंने कहा कि केवल इसलिए कि किसी व्यक्ति पर किसी अपराध में शामिल होने का आरोप है, उसे ध्वस्तीकरण का आधार नहीं बनाया जा सकता।