विजय कुमार
नई दिल्ली, 28 मई। दिल्ली में बेहतरीन क्रिकेटर बनने का सपना लेकर देशभर के युवा आते रहते हैं। लेकिन इन युवाओं को राजधानी में अपने सपनों को पूरा करने के लिए रोजाना यहां के ट्रैफिक से दो-दो हाथ करने पड़ते हैं। जी हां, राजधानी दिल्ली में क्रिकेट का कर्ताधर्ता दिल्ली जिला एवं क्रिकेट एसोसिएशन (डीडीसीए) है। वह हर साल करीब 1500 मैचों का आयोजन दिल्ली के दूरदराज के मैदानों पर करवाता आ रहा है। ये ग्राउंड्स इतने दूर हैं कि मैच खेलने के लिए युवा क्रिकेटरों को गर्मी में अपने घरों कोसो दूर सफर करना पड़ता है। एक चिलचिलाती गर्मी और ऊपर से दिल्ली का ट्रैफिक। इतनी जद्दोजहद के बाद खिलाड़ियों मैच खेलने पहुंचना पड़ता है। कई युवा क्रिकेटरों को तो रोजाना करीब 50 से 60 किलोमीटर तक का सफर करना पड़ता है।
दरअसल दिल्ली की क्रिकेट में पहले ऐसा नहीं होता था। पहले डीडीसीए अपने अधिकतर मैचों को आयोजन 16 से 20 किलोमीटर के दायरे में ही करता था। लेकिन मैदान मालिकों के साथ उसके खराब बर्ताव के कारण अब मैदान मिलना मुश्किल हो गए हैं। मैदान मालिक अपने ग्राउंड डीडीसीए को देने से लगातार इंकार करते रहे हैं। इसके बाद कई सालों से दिल्ली की कोने जैसे ढांसा बॉर्डर, रोहिणी, मुंडका, घेवरा मोड़, जीटी करनाल रोड, लोनी रोड, बख्तावरपुर, हिरंगीं आदि दूर-दराज के इलाकों में बने ग्राउंड किराए पर लेकर लीग मैच आयोजित करवाने पड़ रहे हैं। इनमें से कई मैदानों के साथ दिक्कत ये हैं कि इनके आसपास न तो कोई मेट्रो स्टेशन है न ही डीटीसी की कोई बस यहां तक पहुंचती है। यहां तक पहुंचने तक की सड़कों की हालत भी बेहद खस्ता है। अक्सर खिलाड़ियों को अपने वाहन या कैब से पहुंचना पड़ता है जो उनकी पॉकेट मनी पर काफी असर डालता है। इन मैदानों की दूरी अगर फिरोजशाह कोटला से लगाई जाए तो 30 से 40 किलोमीटर एक तरफा की बनती है। कई मैदानों में खेलने के लिए जाने वाले खिलाड़ियों को यह काम लगभग हर दूसरे दिन करना ही होता है। गर्मी के कारण बढ़े रहे हीट स्ट्रोक के केसों के बीच युवा क्रिकेटरों मैच से ज्यादा पसीना मैदान तक पहुंचने में बहाना पड़ रहा है। इनमें से कई मैदानों में क्रिकेटरों के बैठने के लिए ड्रेसिंग रूम तक नहीं है। उन्हें पेड़ के नीचे टेंट लगाकर बैठने को मजबूर होना पड़ता है। कई मैदानों में तो साफ पानी तक की सुविधा नहीं है। ये आपबीती डीडीसीए लीग खेलने वाले कई युवा क्रिकेटरों ने खुद बताई है।
सूत्रों की मानें तो पहले दिल्ली के दूरदराज मैदानों तक पहुंचने के लिए स्थानीय मैदान मालिक क्रिकेटरों को एक जगह इकट्ठा कर उनको मैदानों तक लाने और मैच के बाद वहां तक छोड़ने का भी काम किया करते थे। लेकिन अब ऐसा देखने को नहीं मिलता।
इस बारे में जब डीडीसीए के सचिव राजन मनचंदा से बात की गई तो उन्होंने बताया कि खिलाड़ियों के हिसाब से ग्राउंड काफी दूर हैं। मगर वह कुछ कर नहीं सकते क्योंकि डीडीसीए, दिल्ली विश्वविद्यालय और उनके कॉलेजों और कुछ अन्य संस्थाओं ने अपने मैदान देने बंद कर दिए हैं। दूसरा कारण है उन मैदानों का किराया भी बहुत ज्यादा था। इसके कारण दूरदराज के मैदानों में मैच करवाने पड़ रहे हैं। हालांकि कोशिश रहती है कि क्लबों के मैच पास के मैदानों में रखे जाएं।