भारत के कई विचारकों का दावा है कि कांग्रेस के राज में गलत इतिहास पढ़ाया गया. इसलिए इतिहास की किताबों में केवल मुगलों का गुणगान हुआ. भारत के महान योद्धाओं को भुला दिया गया. दस साल से देश की सत्ता संभाल रहे PM मोदी भारत के नायकों का महिमामंडन करते हुए उनका इतिहास जन-जन तक पहुंचा रहे हैं. प्रधानमंत्री कई बार कह चुके हैं कि हमें साजिशन गुलामी का इतिहास पढ़ाया गया. इस संदर्भ में आज बात एक ऐसे ही एक महामानव लाचित बोरफुकन की, जिनकी प्रतिमा का अनावरण पीएम मोदी करेंगे. ऐसे में आइए आपको बताते हैं, अहोम साम्राज्य और लाचित बोरफुकन के बारे में सबकुछ.
1671 में मुगलों को हराने वाले योद्धा थे बोरफुकन
अखंड भारत में मुगलों ने देश के बड़े भूभाग पर राज किया. कई राजाओं और योद्धाओं ने मुगलों को कड़ी टक्कर दी. यही वजह है कि मुगल कुछ जगहों को कभी नहीं जीत पाए. यहां बात लाचित बोरफुकन की जिन्हें शिवाजी की तरह मुगलों को युद्ध में धूल चटाने की वजह से पूर्वोत्तर (NE) का शिवाजी भी कहा जाता है. दरअसल जिस समय भारत के कई राजा मुगलों से लोग डर कर उनसे संधि करते थे. उसी समय लाचित ने मुगलों को कई बार मात दी और उनकी रणनीति फेल कर युद्ध के मैदान में कई बार धूल चटाई. असम की राजधानी गुवाहाटी पर मुगलों का कब्जा होने के बाद ये लाचित ही थे जिन्होंने अपनी वीरता और पराक्रम से शिवाजी की तरह मुगलों को बाहर का रास्ता दिखाया था.
गर्व से सीना चौड़ा कर देगी कहानी
आज भारत न सिर्फ अपनी सांस्कृतिक विविधता को मना रहा है बल्कि अपनी संस्कृति के ऐतिहासिक नायक-नायिकाओं को गर्व से याद भी कर रहा है. लचित बरफुकन जैसी महान हस्तियों की कहानी हम सभी के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं. पटना में आयोजित पाटलिपुत्र नाट्य महोत्सव 2024 का मंचन हो या जनवरी 2024 में गृह मंत्री अमित शाह द्वारा गुवाहाटी में ‘असम के ब्रेवहार्ट लाचित बरफुकन’ का विमोचन. हर जगह उनकी गौरव गाथा सुनाई गई.
अहोम साम्राज्य का महानायक
भारत के असम राज्य में करीब 600 साल राज करने वाले अहोम साम्राज्य के बारें में कम ही लोग जानते हैं. लाचित का जन्म 24 नवंबर, 1622 को असम के प्रागज्योतिशपुर में हुआ. उनके पिता का नाम मोमाई तामुली बोरबरुआ था. लाचित बोरफुकन ने मुगलों से लड़ाई लड़ने के लिए असम के आम लोगों द्वारा बनाए गए हथियार और उपकरण का इस्तेमाल किया था. उन्हें युद्ध शास्त्र, रणकौशल, चक्रव्यूह रचना, कूटनीति और युद्धनीति का संपूर्ण ज्ञान था. उन्हें अहोम राजा चक्रध्वज सिंह ने अपने साम्राज्य का सेनापति बनाया और सोलाधार बोरुआ, घोड़ा बोरुआ और सिमूलगढ़ किले का सेनापति जैसी कई उपाधियां दीं.
मुगलों की नस-नस से वाकिफ थे लाचित बोरफुकन?
असम में ब्रह्मपुत्र नदी है. लाचित जानते थे कि मुगलों की सेना कमजोर है. खासकर नदियां पार करके युद्ध लड़ने में उन्हें मैदानों की तुलना में ज्यादा वक्त लगता है. ऐसे में लाचित ने अपने राज्य की सीमाएं सुरक्षित कीं और दुशमन को ब्रह्मपुत्र नदी के रास्ते से आने को मजबूर किया.
सराईघाट की जंग
17वीं सदी की शुरुआत में मुगलों ने अपनी सीमा के विस्तार के लिए पूर्वोत्तर का रुख किया. इस दौरान उनका सामना असम के महानायक लाचित से हुआ. अहोमों का राज असम में ब्रह्मपुत्र घाटी तक फैला था. 1671 में गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र के तट पर लड़ी गई सराईघाट की लड़ाई के दौरान बोरफुकन अहोम सेना के सेनानायक थे. इस युद्ध में लाचित बोरफुकन ने अपने अदम्य साहस के दम पर क्रूर मुगल शाषक औरंगजेब के सेनापति राम सिंह को सेना समेत असम से बाहर खदेड़ दिया था.