मिशन बाजीगर… ये बाजी 41 जिंदगियों से जुड़ी हुई है, जो अपने अंजाम पर पहुंच गई है. 41 जांबाज जीत गए हैं. सिल्क्यारा टनल में 17 दिन से जारी रेस्क्यू ऑपरेशन में कई किरदार हैं. रेस्क्यू ऑपरेशन के आखिरी चरण में रैट माइनर्स ने अहम भूमिका निभाई. मलबों की खुदाई कर रैट माइनर्स ने रास्ता बनाया. आखिरी के 2 दिन रैट माइनर्स गेम चेंजर साबित हुए. शाम करीब 7 बजकर 4 मिनट पर पाइप को ब्रेकथ्रू मिला. इसके बाद 7 बजकर 35 मिनट पर पहला श्रमिक बाहर निकला और करीब एक घंटे के अंदर सभी श्रमिक बाहर आ गए.
रैट माइनर्स टीम में शामिल मजदूरों ने खुदाई का पूरा प्रोसेस बताया. उन्होंने बताया कि पैर मोड़कर बैठते थे. इसके बाद ड्रिल मशीन और कुदाल से खुदाई करते थे. इसके बाद दूसरा व्यक्ति हाथों से मलबे को उठाकर ट्रॉली में डालता है. हालांकि, इस दौरान ऑक्सीजन की कमी नहीं होती है. रैट माइनर्स ने बताया, ‘मजदूर हमें देखकर बहुत खुश हुए. जब हम दूसरी ओर दाखिल हुए तो उन्होंने हमें गले लगा लिया. उन्होंने हमें चॉकलेट दी.’
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चूहों की तरह खुदाई में माहिर हैं रैट माइनर्स
सिलक्यारा में 60 मीटर ड्रिलिंग करने की चुनौती थी. दुनिया की बेहतरीन मशीनों ने 15 दिन में 47 मीटर खुदाई की. आखिरी के 2 दिन में जिन्होंने 13 मीटर खुदाई की, वो थे 12 रैट माइनर्स. चूहों की तरह खुदाई करने में माहिर रैट माइनर्स टीम के लोग एक पाइप के जरिए अंदर गए. वहां से मलबा हटाया. रैट माइनर्स की टीम के तीन लोग सुरंग के अंदर पहुंचे. एक रैट माइनर खुदाई करता रहा, दूसरा मिट्टी हटाता रहा और तीसरा रैट माइनर इस मिट्टी को बाहर भेजता रहा. इनके नाम में भले ही ‘रैट’ जुड़ा है, लेकिन सिलक्यारा टनल में इन्होंने साबित कर दिया कि 41 श्रमवीरों को ये शेर बनकर बचाकर लाए.
खुदाई के बाद कैसा था सुंरग में फंसे मजदूरों का रिएक्शन?
यह पूछे जाने पर कि उन्हें इस रेस्क्यू ऑपरेशन का काम कैसे मिला? इस पर वकील हसन ने कहा कि 4.5 किमी लंबी सिल्क्यारा-बारकोट सुरंग का निर्माण करने वाली निर्माण कंपनी नवयुग ने उन्हें बुलाया था. वकील हसन ने कहा, ‘पूरे देश की निगाहें हम पर थीं और हम निराश नहीं कर सकते थे.’ उन्होंने खुलासा किया कि उन्होंने ऑपरेशन के लिए पैसे लेने से इनकार कर दिया. हसन ने बताया कि यह साथी देशवासियों के लिए था.
रेस्क्यू टीम ने खुदाई में दिन-रात कर दिया एक
सिल्क्यारा टनल में फंसे सभी 41 मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए रेस्क्यू टीम ने दिन-रात एक कर दिया. पूरे मिशन को सफल बनाने में NDRF के साथ रैट माइनर्स की टीम की अहम भूमिका रही. जब बड़ी-बड़ी मशीनें और तकनीक हार गई, तब इन रैट माइनर्स ने अपने हुनर और हौसले से 41 मजदूरों तक पहुंचने का रास्ता बनाया.
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